सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र से पूछा, “क्या किसी व्यक्ति को किसी खास भाषा बोलने पर विदेशी कहा जाना चाहिए?” राज्य में सत्तारूढ़ दल बार-बार आरोप लगाता रहा है कि देश के विभिन्न हिस्सों में बंगाली बोलने वालों को बांग्लादेशी बताकर पीटा जा रहा है, परेशान किया जा रहा है, गिरफ्तार किया जा रहा है और यहाँ तक कि जबरन बांग्लादेश भेजा जा रहा है। तृणमूल नेता ममता बनर्जी और पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव अभिषेक बनर्जी लगभग हर दिन केंद्र पर निशाना साध रहे हैं। जिस सवाल ने इस बहस को जन्म दिया, वह आज देश की सर्वोच्च अदालत ने उठाया। बंगाल में प्रवासी कामगारों के उत्पीड़न के मुद्दे पर दायर एक मामले की सुनवाई शुक्रवार को न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति बिपुल एम पंचोली की पीठ में चल रही थी। उस सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बागची ने कहा, “अगर वह किसी खास भाषा में बोलते हैं, तो क्या उन्हें विदेशी कहा जाएगा?” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने उसी लहजे में पूछा, “अगर वह बंगाली में बोलते हैं, तो क्या उन्हें बांग्लादेशी कहा जाएगा?” इस दिन तीन न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा। केंद्र को इस मुद्दे पर 11 सितंबर को अपना बयान देना होगा। तृणमूल नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मुद्दे को काफी अहम मान रहा है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका के आधार पर बंगाल के प्रवासी कामगारों के संबंध में एक ऐतिहासिक आदेश और टिप्पणी दी है। एक सीमावर्ती राज्य के रूप में बंगाल की ऐतिहासिक भूमिका को स्वीकार करते हुए, देश की सर्वोच्च अदालत ने आज माना कि कैसे बंगाल पीढ़ियों से शरण, आशा और संस्कृति का स्थान रहा है….फंसे हुए प्रवासी कामगारों के लिए आशा का एक बड़ा स्थान बनाया गया है।’ सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने आज निर्देश दिया कि कलकत्ता हाई कोर्ट इस मुद्दे पर दायर सभी मामलों की तुरंत सुनवाई करे, जिसमें बीरभूम की सुनाली खातून द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला भी शामिल है, जिन पर बांग्लादेश ‘वापस धकेले जाने’ का आरोप है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दायर मामले का बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले से कोई संबंध नहीं है। परिणामस्वरूप, कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति रीताब्रत मित्रा की खंडपीठ को अब बांग्लादेश में ‘पुश बैक’ मुद्दे पर दायर सभी मामलों की सुनवाई करने में कोई बाधा नहीं रही।
‘अगर कोई बंगाली बोलता है तो उसे गिरफ्तार किया जाता है, पीटा जाता है और परेशान किया जाता है’! सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराज़गी
